सब हैं ईस धरती के उज्याले… –मुसाफिर पालनपुरी
तुझ को तेरा राम संभाले; बात खतम !
और मुझे रब मेरा पाले; बात खतम !
एक हैं सारे गोरे काले; बात खतम !
सब हैं ईस धरती के उजयाले; बात खतम !
ईससे बढकर और इबादत क्या होगी ?
नफरतकी दिवारको ढाले; बात खतम !
आ बतलाउं राझ तुझे खूशहाली का
‘दिलवालोंसे रब्त बढा ले; बात खतम’ !
बेखौफी ही बुग्झो बगावत का हल है–
हर झालीम से आंख मिला ले; बात खतम !
जो भी तेरा चैन उडाए; दिल तोडे
छोड दे उसको रब के हवाले; बात खतम !
प्यार, वफा से बढकर कोई बात नहीं
दिल में बस ! ये बात बीठा ले; बात खतम !
ईन्सां की दरअस्ल ‘मुसाफिर’ गंगा है–
इस पानी में खूब नहा ले; बात खतम !
– –मुसाफिर पालनपुरी
(रब्त=संबंध, बेखौफी=निर्भयता, बुग्झोश=बगावत के वेरभावना, दरअस्ल=हकीकतमां.‘बात खतम’ उस्ताद बिस्मिल्लाहखां साहेबका तकिया कलाम थाजो ईस गझल का असल उनवान है.. ये गझल. १७ जुलाई २००७की शामको इंदुचाचाकी यादमें मोअक्कीद प्रोग्राममें जनाब मुसाफिर पालनपुरी साहबमे पेश किया था.)
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